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Tuesday, January 22, 2013

कैसी स्वतंत्रता कैसा गणतन्त्र

कैसी स्वतंत्रता कैसा गणतन्त्र 


देश की कोई दुर्दशा पर भी, जब सत्ता की नींद न खोले;
सब जनता इनसे त्रस्त होके, जब अपने मुख से बोले
आतंकियों को बिरयानी व निहत्थों पर लाठी चलवायें;
इस तन्त्र को गणतंत्र मान, कहो भला अब कैसे मनाएं?
सत्ता इसके तन्त्र व बिकाऊ मीडिया को देना है धिक्कार;
सबसे पहले, स्वतंत्रता व गणतंत्रता दिवस का बहिष्कार
अधिनायकवादी सत्ता का विरोध, अपना है सदा अधिकार; 
क्या आपभी मेरी बातसे सहमत हैं और है यह स्वीकार-तिलक 
सत्य का तथ्य 
पहले जयचंद सा गद्दार, कभी कोई होता था !
ज हर ओर उन जैसों का आभास होता है
एक छिद्र मात्र से, नौका को डूबा देते हैं;
छननी की नौका, बनाने की सोच लेते हैं !
तुरंत डुबाने के इसी कुचक्र से उपजी कांग्रेस;
का जनक था, ए ओ ह्यूम नामक एक अंग्रेज । -तिलक 
पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है| -युगदर्पण
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है | इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||" युगदर्पण

Monday, July 12, 2010

तुम

मेरे दिल में क्या है जो तुम देख पाते
खुदा की कसम तुम न यूँ रूठ पाते

तुम जो गए हो तो दिल है ये सूना
क्यूँ इतनी थी जल्दी कुछ तो बताते

है बेचैन दिल ये , नहीं चैन इसको
करें क्या हम कुछ समझ ही न पाते

तनहाइयों के रंग बड़े ही अज़ब हैं
जुदाई सहें कैसे हमें तू ही बता दे

अब छा गया है मेरे हर सू अँधेरा
खुशियों को तुम बिन कैसे सदा दें

तुम ही हो साज इस जीवन के मेरे
"कादर" कैसे सजें सुर तू ही बता दे

केदारनाथ"कादर"
kedarrcfdelhi.blogspot .com



"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Wednesday, June 30, 2010

टोपी धारी किन्नर

तुम प्रजातंत्र का नाम लेकर
पीटते रहो ढोल वाह वाही के
और वो तुम्हारे देश में ही
पले कुत्ते , देखें तुम्हे घूरकर
झाग उगलते चीखते चिल्लाते
कहते रहो- देश को माँ भारती
वो तुम्हारा राष्ट्रीयगान नहीं गायेंगे
पोंछेंगे तुम्हारे झंडे से अपने जूते
तुम अहिंसा का राग अलापते हो
अहिंसा कायरो को शोभा नहीं देती
तुम्हे कश्मीर में सरकार चाहिए अपनी
इसलिए बेच दी है भावनाएं देश की
तुम समझौता चाहते हो देशद्रोहियों से
कर साल अरबों रुपये लुटाते हो उनपर
वो तुमपर थूकते हैं, भागते हैं पाकिस्तान
सीखने नए पैंतरे तुम्हे काटने के लिए
तुम्हारे अपने देश के कश्मीरी बच्चे
बिकते हैं सिर्फ दो दो सौ रपये में
मारने को पत्थर तुम्हारे जवानों पर
बैठे रहो सीमाओं पर करते रहो रक्षा
बाहर को देखते हुए अपने दुश्मन
और वो साले लड़ाते रहें तुम्हें
धर्म और इस्लाम के नाम पर
वो इस्लाम का "इ" नहीं जानते
मगर जानते हैं तुम्हारी कमजोरी
जीतकर हारने की तुम्हारी आदत
देखते रहो सपना पूरे कश्मीर का
बिना कुर्वानी कुछ नहीं मिलता
शिखंडी सरकार के नुमाइन्दे सिर्फ
भौंकना जानते हैं, सिपाहियों से घिरे
कभी कुछ बोल भी दिया जोश में
आलाकमान बुलाकर धमका देती है
अरे कुर्सी से चिपके हुए पिस्सुओ
तुम से कुछ नहीं होता तो छोड़ दो
आगे आने दो हिजड़ों को भी
शायद वो ही बचा सकें देश की इज्ज़त
क्योंकि उनके मरने पर कोई नहीं रोता
अपने क्रिया कलापों से तुम ही हो
इस संसद के टोपी धारी किन्नर

केदारनाथ" कादर"
kedarrcfdelhi.blogspot .com

"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Wednesday, June 23, 2010

माया

खेल अनोखा पागल मन का , बिलकुल समझ न आये
पानी, पानी बिच रहे बुलबुला , काहे ये अलग कहाए

जीवन है क्षणभंगुर ऐसा , पानी के बुलबुले के जैसा
कुछ भी अलग नहीं दोनों में, बात समझ नहीं आये

मूल में आकर मिलना है, भेदन करके रूप नए का
द्वैत मिटाना है अंतर से , यही जीवन लीला कहलाये

मूल से मिल मूल जान ले, अलग नहीं तू सत्य मान ले
अलग अलग का भान ही तेरा, "कादर" माया कहलाये

केदारनाथ" कादर"kedarrcfdelhi.blogspot .com


"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Monday, June 21, 2010

सदा ए वक़्त

जब तलक फिर से लहू बहाया न जायेगा
मुल्क बरबादियों से बचाया न जायेगा

किससे करें शिकायत, शिकवा, सब हैं चुप
बिन शोर नाखुदाओं को जगाया न जायेगा

माना हैं बिगड़े मुल्क के मेरे हालात दोस्तों
क्या एक नया इन्कलाब लाया न जायेगा

खुदगर्ज़ रहबरों की है बारात मुल्क में
क्या फ़र्ज़ का सलीका सिखाया न जायेगा

जब तक सुकून से नहीं मुल्क का हर शख्स
सोने का फ़र्ज़ "कादर" निभाया न जायेगा

केदारनाथ" कादर"
kedarrcfdelhi.blogspot .com


"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Sunday, June 20, 2010

बदल नहीं सकती

माना हमने दर्द की शाम ये ढल नहीं सकती
जलाकर दिल क्या किस्मत बदल नहीं सकती

वो जो कहते थे अक्सर "बेवफा" मुझको
उनकी क्या आदत ये बदल नहीं सकती

ये बात और है लिखा है किस्मत में डूबना
कोशिशों से क्या इबारत ये बदल नहीं सकती

माना मुश्किल है ठहरना मेरी मौत का यारो
उनके आगोश में क्या मौत ढल नहीं सकती

हमने चाहा है जिसे अपनी रूह की मानिंद
बेवफा "कादर" चुरा नज़रें निकल नहीं सकती


केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj.blogspot.com

"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Tuesday, June 15, 2010

ज़िक्र न करना


उसने कहा है देके कसम, मेरा ज़िक्र न करना
आ जाये गम गले तक भी, मेरा ज़िक्र न करना

माना अकेले होंगे तुम, हर मोड़ पर -ऐ- दोस्त
रूह जब्त न कर पाएगी सितम, मेरा ज़िक्र न करना

आँखों में उमड़ते रहें चाहे तेरी, अश्कों के समंदर
तुम डूबती कश्तियों से भी, मेरा ज़िक्र न करना

दुश्मन से न कहना बर्बादे मुहब्बत का ये किस्सा
खामोश निग़ाह दोस्तों से भी, मेरा ज़िक्र न करना

न सोचना की अंधेरों में, अकेले हैं हम कहीं
तेरा रोशन चिरागे याद है, मेरा ज़िक्र न करना

हम खुद ही हुए जाते हैं दफ़न अपने सीने में
"कादर" हों सामने भी अगर, मेरा जिक्र न करना


केदारनाथ"कादर"
kedarrcftkj .blogspot .com


"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Tuesday, June 1, 2010

नेता जी के नाम

दोस्तों मेरी ये कविता उन नेताओं को समर्पित है जो शायद ही इसे समझ सकें, क्योंकि अगर वो समझ सकते तो ऐसी कविता मुझे लिखने की आवश्यकता नहीं होती. आज केवल कुर्सी का खेल चल रहा है. सब एक दूसरे के चुतड पोंछ रहें हैं उन्ही गंदे सने हाथों से ताकि कोई भी ये न कह सके की हम साफ हैं. आज नेतागिरी के नाम पर बेगुनाह लोगों को जलाया जा रहा है. रोटी का इंतजाम करने के बजाय गोलियां बरसाई जा रही हैं. पीने के पानी की मांग करो तो वाटर केनन की मार मिलती है. जिस देश में "दूध बेचा पूत बेचा"
कहा जाता था वहां पर बोतल बंद पानी पंद्रह रुपये में मिलता है. आजादी के साठ साल बाद भी हर चौराहे पर भिखारी दिखाई देतें हैं. हर रोज़ अख़बारों में गंद भरा हुआ परोसा जाता है. समाज को राह दिखाने वाले अख़बार कॉल गर्ल्स के मसाज पार्लर के नंबर छापते हैं , देश को गर्त में धकेलने के लिए, न की उन लोगों का पता पुलिस को देते हैं , वृद्ध केसरी क्लब चला कर , बाप और दादा की हत्या को शहीदी का नाम देकर चंडी चमका रहे हैं. अगर उनके बाप या दादा ने अच्छा कम किया तो इसके लिए उन्हें धन्यवाद, लेकिन कभी ये भी सोचो किस मकसद से ये अख़बार चलाये थे उन्होंने. बाप बेटी साथ बैठकर अख़बार नहीं पढ़ सकते. कहने को हर एक मंत्रालय है, मंत्री हैं नेता हैं पर सब...साल...ए. ... अकल से पैदल सत्ता कामनी की गोद में अपने को स्खलित कर रहे हैं ताकि और भी खूंखार जानवर पैदा हों उनके दूषित रक्त से . कोई नेता तो पढ़ेगा नहीं . शायद कोई चमचा या दिल जला ही कभी उन्हें उनके कर्मों के दर्शन करा दे.


नफरतों से प्यार की, हर हद मिटा दी आपने
दिल में जो रोशन शमा थी वो बुझा दी आपने

जान की बाजी लगा दी आपकी हर बात पे
किस तरह ये जां बचे, कैसी सजा दी आपने

आपकी आमद से दिल का सुकून जाता रहा
जाने किन शैतानों को सदा दी आपने

जख्मे दिल खिल उठे, आपके इस प्यार से
जिंदगी की शक्ल में,क्या मौत दी है आपने

हर उजाला जिंदगी से दूरतर होने लगा
ऐसी बदअमनी हुज़ूर फैला दी है आपने

हम खुदा के बंदा-ए-नाचीज हैं और कुछ नहीं
"कादर" खुदकशी कर ले वो हालत बना दी आपने.

केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj .blogspot .com




"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Monday, May 10, 2010

सोचता था उम्र भर, दीप बनकर जलूँ
बन ज्योति हाथ हाथों में लेकर चलूँ

मगर मुझको भी इस तिमिर ने छला
उजले घर , लेकिन सोच उज्वल कहाँ है

अब तो नज़रों का है धोखा भीड़ भी
भीड़ में भी शख्स अकेला ही खड़ा है

पास रहकर भी रहे हम दूर जैसे
संग सांसों के घुटन का सिलसिला है

काफिले कितने ही कायरों के है यहाँ
दोस्त भी पिछले मोड़ से मुड़ गया है

नींद नहीं ,तकिया कोहनी का लगाकर
डर लुटने का घर मन में कर गया है

सोचता हूँ कुछ धरोहर छोड़ने को लिखूं
"कादर" हर व्यथा जैसे मेरी ही कथा है

केदारनाथ "कादर"



"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Friday, March 26, 2010

मिलन

कभी कभी मन में सोचती हूँ कि मैं क्या हूँ ?
तुम्हारी परछाई या तुम्हारी आशाओं का बदन

तुम्हारी जिन्दा मुर्दा इच्छाओं कि कब्रगाह
या तुम्हारे और मेरे देखे हुए सपनों का चमन

जीवन में अनेकों प्रश्न कितने बड़े और टेढ़े
जैसे शांत और भयानक ये नील गगन

बहुत देर तक जोड़े रखा है तुमसे खुद को
अब लगता है कभी कि मैं तुम हो जाऊंगी

बहुत दिनों से ढांप राखी थी जिंदगी क़ी चादर
"कादर" तुमसे मिलने हर दीवार गिराकर आऊँगी

केदार नाथ "कादर"
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